Monday, 23 January 2017

अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले महान “सुभाष चंद्र बोस” की जयंती आज! देश ने किया अपने नेताजी को नमन

अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले महान “सुभाष चंद्र बोस” की जयंती आज! देश ने किया अपने नेताजी को नमन



भारत को आजादी दिलाने में अभूतपूर्व योगदान देने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज 121वीं जयंती है। 23 जनवरी 1897 को कटक में जन्म सुभाष बाबू एक आसाधारण योद्धा थे, जिन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। उन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों से दो-दो हाथ किए। अपने नेताजी की जयंती के अवसर पर देशवासियों ने सुभाष बाबू को नमन किया। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नेताजी की नमन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्विट संदेश में लिखा कि, भारत को आजादी दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले नेताजी जी को नमन।



आजाद हिंद फौज का गठन किया

सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। उन्होंने जापान, जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की, लेकिन ब्रिटिश शासकों ने उन्हें खत्म करने का आदेश दे दिया। सुभाष चंद्र बोस ने जय हिंद का नारा दिया, जोकि एक राष्ट्रीय नारा बन गया है। इसके अलावा 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' जैसे नारों से उन्होंने सोए हुए भारतीयों में एक लौ जला दिया। अब भारतीयों के खून भी खौलने लगे और देश ने एक मुस्त होकर अंग्रेजों के भारत से ताड़ने का फैसला लिया।

21 अकटूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च कमांडर की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार बनाई। जिसे जर्मनी, जापान, फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी। देश की आजादी के लिए नेताजी कुल 11 बार जेल गए। पहली बार वह 16 जुलाई 1923 को जेल गए। 1930 में जब सुभाष बाबू जेल में बंद थे, तभी उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया।

पढ़ाई में भी तेज थे सुभाष बाबू

नेताजी पढ़ाई में भी तेजतर्रार थे। 1915 में बीमार होने का बावजूद उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1919 में नेताजी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए ऑनर्स में प्रथम श्रेणी में उत्तरीर्ण किया। इतनी ही नहीं कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान रहा। 15 सितंबर को नेताजी इंग्लैंड चले गए और 1920 में उन्होंने आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की।

कांग्रेस के अध्यक्ष बने, लेकिन जल्द ही इस्तीफा दे दिया

1938 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हरिपुरा में तय हुआ। गांधी ने सुभाष चंद्र बोस का कांग्रेस का अध्यक्ष चुना। यह कांग्रेस का 51वां अधिवेशन था। 51 बैलों वाले रथ में नेताजी का स्वागत हुआ। बाद में गांधी जी को सुभाष चंद्र बोस की कार्यशैली पसंद नहीं आई। और खुद भी नेताजी दवाब में रहकर काम नहीं करना चाहते थे। आखिर तंग आकर 29 अप्रैल 1939 को नेताजी ने कांग्रेस पद से इस्तीफा दे दिया।

हिटलर से भी मिले नेताजी

नेताजी ने 29 मई 1942 को जर्मनी के तानाशाह हिटलर से मुलाकात की और हिटलर से मदद की मांग की। लेकिन हिटलर को भारत के विषय में कुछ ज्यादा रुचि नहीं थी। इसलिए हिटलर ने नेताजी से कोई वचन नहीं किया।

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